Saturday 1 April 2017

और मैं ख़ामोश हूँ ......


    सौ रंग, सब....
 बिखरे  पड़े हैं ...
और मै  ख़ामोश हूँ !
 रूठी -रूठी ....
दरिया अभी है ...
देखो सफ़ीने 
चुप से खड़े हैं !
और मैं ........
ख़ामोश हूँ !!
_______________ डॉ . प्रतिभा  स्वाति










  तन -निरोगी 
और मन में 
देखिये पीड़ा बड़ी है !
चाहती सुख की 
समाधी .. !
यम- नियम में 
गुज़री उम्र आधी !
इक  मुसाफ़िर 
सफ़र में  खड़ी है !
आई हूँ जहाँ से 
जाने की वहीं पर 
ज़िद है , हडबडी है !
बात छोटी सी 
आज लगती बड़ी है !
काज सब हुए पूरे 
विदाई की घड़ी है !
मत मुझे आवाज़ देना 
अब जल्दी बड़ी है ..
विदाई की घड़ी है !!
_________________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति




No comments:

Post a Comment