Saturday 23 April 2016

ख़्वाब ,जिससे मैं जागना नहीं चाहती

1984 में,  कितनी मुश्किलें आई थी तब , जब g.d.c. indore में मैंने प्रवेश लिया . फॉर्म में फ़ोटो लगाना ,और इसके लिए स्टूडियो तक जाना :)
__________________फिर जब तक पढाई पूरी नहीं हुई यही फ़ोटो, कॉपी करवा के काम आता रहा . बस पास , लायब्ररी कार्ड , परिचय- पत्र में पहचान के लिए यही फ़ोटो था ! जब भी श्वेत -श्याम इस तस्वीर को देखती हूँ इन आँखों में ढेर ख़्वाब नज़र आते हैं ,एक निरभ्र नील असीम आकाश ! एक तस्वीर जो मुझे पूरी कॉलिज याद दिलाने दम रखती है . अब की सेल्फी अभी ली ,अभी डिलीट .....ऐसा क्यूँ ?
मुझे मालूम है फ़ोटो की अहमियत ,जब मैंने फोटोग्राफी  शुरू की , डार्क रूम बनाया , इनलोर्जर लेके आई , वो लाल प्रकाश , फ़ोटो डेवलप करना ,अँधेरे ही में रोल कट करना और फ़िर अख़बार और पत्रिका में छपने पर जो पारिश्रमिक मिला वो उतना नहीं था ..... जितना मैंने सारे टीमटाम पे खर्च कर डाला था . 6000  का केनन का केमेरा और 10000
का इन्लोर्जर आज भी मुझे उस श्रम और संघर्ष की याद दिलाते हैं .
इस तस्वीर को मैंने बहुत जगह काम लिया . कभी अपनी कहानियों तो कभी कविताओं में . एक मासिक या साप्ताहिक पत्रिका निकलती थी तब  (1990)दिल्ली  से उसके कवर पे भी ये फ़ोटो छपा था --------- बिटिया की मॉडलिंग और मेरी फ़ोटोग्राफ़ी के बहुत सारे प्रमाण अब भी हैं ___ जो लोरी और कहानी जैसे हैं . शहद जैसे हैं . फूल जैसे हैं . जैसे उनमें कोई जादू है , कोई सम्मोहन . कोई तन्द्रा या निद्रा जैसा कुछ . जैसे कोई ख़्वाब , जिससे मैं जागना नहीं चाहती ....
__________ डॉ. प्रतिभा स्वाति 

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